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मंहगाई मार गई रे ।
मानव का मंहगाई से दामन चोली का साथ रहा है । हमारे देश में जनसंख्या की बहुलता है और इस बहुलता का फायदा व्यापारी वर्ग प्राप्ति और आपूर्ति की कमी का लाभ उठा कर मंहगाई को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं । आज आम आदमी का जीवन रोटी, कपड़ा और मकान तक ही सीमित हो जाता है । आज दो समय की रोटी खाने में ही पूरा जीवन समाप्त हो जाता है । कभी कभी लगता है कि हम जीवन में खाने पीने के अलावा और कुछ करते ही नहीं हैं क्योंकि हमारे पास सोचने के लिए समय ही नहीं बचता है ।
आलू, प्याज को गरीबों की सब्जी माना गया है किंतु आज आलू व प्याज भी रुला रही है । आजकल प्याज 50 रुपए किलो के भाव से मिल रही है । बताइए, बेचारा गरीब किसान प्याज से रोटी कैसे खा सकता है । आम लोग भी प्याज के आंसू बहा रहे हैं । दालें भी तूफान ला रही हैं । अरहर, मूंग, उड़द व मसूर सभी दाले आम आदमी के बजट से काफी दूर हो गई हैं । गरीबी गरबा नृत्य कर रही है और प्राप्ति एवं आपूर्ति का रोना रो रही है । गरीबी ने आम आदमी का जीना कठिन कर दिया है।
देश में जब राजनीतिक चुनाव होते हैं तब तो व्यापारी वर्ग की चांदी होती है और मंहगाई अपने पूरा शबाब पर होती है । उस समय मंहगाई पर कोई रोक नहीं होती है और व्यापारी वर्ग इन जीवनयापन संबंधी वस्तुओं का भंडार करके मंहगे दाम पर बेचते हैं । हालांकि सरकार ने दाल व्यापारियों पर काफी छापे भी मारे हैं और दाले विदेशों से आयात करने का निर्णय भी लिया है लेकिन इतने बड़े देश में ये कदम कुछ अपर्याप्त से नजर आ रहे हैं ।
मंहगाई के पीछे सबसे बड़ा कारण मानसून की बेरुखी भी है । इस बार देश में वर्षा बहुत कम हुई और पर्याप्त मात्रा में फसलों की बुआई नहीं हो पाई । वैसे भी भारतीय कृषि व्यवस्था मानसून की कृपा पर निर्भर करती है, कभी अल्प वृष्टि तो कभी अति वृष्टि । सिंचाई के संसाधनों की अपर्याप्ता ने किसानों को बेचेन कर दिया है । हमारे यहॉं आवश्यकतानुसार वर्षा के जल का संचय की कोई दीर्घकालीन कारगर योजना नहीं है । जब वर्षा होती है तो काफी जल बेकार में बहकर समुद्र में मिल जाता है और हम उसका संचय नहीं कर पाते हैं । हम सभी देशवासियों को चाहिए कि वर्षा के जल संचय के बारे में अपनी अपनी आवश्यकतानुसार नीति अपनाऍं तथा अधिक से अधिक जल संचय कर देश में कृषि व्यवस्था को और प्रभावी बनाऍं । अभी हाल ही में तमिलनाडु के चेन्नई व उसके आसपास वर्षा ने तांडव्य नृत्य दिखाया, काफी संख्या में लोग मारे गई कुछ बेघर हुए । यानीकि हमारे पास आपदाओं का पूर्वानुमान लगाकर उसके प्रभाव को कम करने कोई प्रभावकारी तंत्र नहीं है । आज वैज्ञानिक युग अपने चरम पर है और हमारे देश के कृषि वैज्ञानिकों को इस ओर एक नई व्यवस्था का संचार करना होगा कि हम अनुमानित आपदाओं को रोक तो नहीं सकते लेकिन पूर्व तैयारी के द्वारा उनके विनाशकारी प्रभाव को कम तो अवश्य ही कर सकते हैं ।
विकास के नाम पर शहरीकरण से प्राकृतिक वनस्पति का नाश किया जा रहा है । आस पास के गांव शहरी हद में आ रहे हैं । वृक्षों व वन संपदा को काटा जा रहा है और सीमेंट कंकरीट का जंगल खड़ा किया जा रहा है । निश्चित ही इससे हमारे मौसमों में बेहताशा बदलाव आ रहा है और वर्षा ऋतु का काल भी अनियमित व अल्प हो रहा है । हम सभी को इस ओर भी ध्यान देना होगा । हमारे यहॉं खाद्यानों का उत्पादन भी अच्छी मात्रा में होता है लेकिन उसकी खपत भी उसी मात्रा में हो जाती है और इससे मंहगाई को बढ़ावा मिलता है ।
मंहगाई को रोकने के लिए सामूहिक व निजी प्रयास युद्ध स्तर पर किए जाने का अब समय आ गया है । एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने से बचते हुए हम सभी जहॉं पर हैं और जितना कर सकते हैं उतना अवश्यक करें । अपने परिवार को सीमित करने का प्रयास करें । अन्न का दुरुपयोग न करें क्योंकि आपके द्वारा अन्न बचेगा तो वह दूसरे के लिए उपयोगी होगा । हमारे यहॉं काफी मात्रा में खाने का दुरुपयोग होता है । हम थाली में उतना ही अन्न लें जितनी कि हमें आवश्यक हो ।
हमारे देश में किसानों की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है । किसानों के लिए बिना किसी भेदभाव के बीज, खाद एवं सिंचाई की भरपूर व्यवस्था की जाए । किसानों को वर्ष के खाली दिनों में उनके लिए ग्रामों में ही अल्पकालीन या दीर्घकालीन रोजगार की व्यवस्था करना परम आवश्यक है जिससे किसानों की माली हालात काफी अच्छी हो सके । किसान हमारे अन्नदाता है और जब तक हमारे अन्नदाता दुखी होंगे तब तक न तो हम और न ही देश विकास के वास्तविक लक्ष्य को भेद सकता है । देश के औद्योगिक घरानों को इस ओर भी अपना विशेष ध्यान देना चाहिए । उद्योगों के आसपास के गॉंवों के किसानों के लिए आर्थिक कार्यक्रम चलाकर उनकी स्थिति को अच्छा किया जा सकता है ।
यह सत्य है कि हम अपने स्तर पर मंहगाई को काफी हद तक कम कर सकते हैं । सरकार भी अपने स्तर पर प्रयास कर रही है और औद्योगिक घरानों को भी इस क्षेत्र में जितना कर सकत हैं उन्हें अवश्य करना चाहिए । व्यापार में धन कमाना जरुरी है लेकिन गरीबों को आवश्यक जीवनोपयोग वस्तुओं की आपूर्ति भी हम सभी का दायित्व है ।
मंहगाई मार गई रे, जिंदगी डोल गई रे,
आलू,प्याज व दाल थाली से दूर हो गई रे ।
मत घबराओ, नई फसल आने का आगाज है,
काले घने बादलों के बाद खुशी की वरसात का माहौल है ।
– राजीव सक्सेना
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