samras
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भौगोलिक दूरियॉं मुक्त
स्पर्धा ने आदमी को गतिशील बना दिया है,
निर्माता को नया सोचने को मजबूर कर दिया है ।
बाजार ने देश की सीमाओं को लांघ लिया है,
ब्रांडों की बहुलता ने ग्राहकों को मोह लिया है ।
लागतमूल्य, व लाभप्रदता ने झकझोर दिया है,
कॉर्पोरेट फलक को परिवर्तन ने बेचैन कर दिया है।
देशीय कंपनी अब बहुराष्ट्रीय कंपनी में बदल रही हैं,
निज कार्य संस्कृति व चेतना नव्य प्रयोग कर ही है।
उत्कृष्ट उत्पाद, प्रदाय सेवाऍं प्रखर होने लगी हैं,
भारतीय दक्षता व उत्पाद विश्व में प्रिय हो रहे हैं ।
उन्मुक्त विकास ने विश्वबाजार को विस्तृत कर दिया है,
ऊँचे वेतन, रोजगार ने नए अवसरों को खोल दिया है।
योग्यता एवं क्षमता की तलाश बढ़ती जा रही है,
और मानव भौगोलिक दूरियों से मुक्त हो रहा है ।
– राजीव सक्सेना
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