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मुस्‍कुराइए और निरोगी काया पाइए ।

samras
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मुस्‍कुराइए और निरोगी काया पाइए ।

मानव जीवन में स्‍वस्‍थ होना प्रकृति की अनुपम कृति है । प्राचीनकाल में हमारे पूर्वजों को न तो दिल की बीमारी होती थी और न ही बी पी की समस्‍या थी क्‍योंकि उस समय शुद्ध खानपान एवं आचार विचार की महत्‍ता थी । जैसे जैसे मानव सभ्‍यता के दौर में आगे बढता गया वैसे ही उसके खानपान एवं रहन सहन में अंतर आता गया । प्राकृतिक संतुलन एवं शुद्ध खानपान आज लुप्‍त सा होता जा रहा है जिसका  प्रभाव हमारी जीवन शैली पर पड़ता जा रहा है और हम निरोगी काया से रोगी काया की ओर बढ़ते जा रहे हैं ।

अगर हम जीवन मे कुछ कदमों का अनुपालन करें तो काफी हद तक हम निरोग रहकर जीवन यापन कर सकते हैं ।

प्रात:काल जल्‍दी सोकर उठने की आदत डालें। रात में जल्‍दी सोऍं ।इससे आपको संतुलित मात्रा में नींद आएगी । जब आप अपने शयनकक्ष में जाऍं तो मुँह हाथ ताजे पाने से धोकर ही विस्‍तर पर जाएं । कुछ देर तक नोबल या समाचारपत्र पढ़ने की आदत विकसित करें या अपनी पसंद का धीमी आवाज में म्‍यूजिक सुनें । तनाव को शयनकक्ष में न ले जाऍं । आपको समुचित मात्रा में नींद आएगी ।

मानव जीवन आज बहुत महत्‍वाकांक्षी हो गया है । हमारे पास जो है उससे हम संतुष्‍ट नहीं है और जो नहीं है उसके लिए हम परेशान रहते हैं । हमारी आवश्‍यकताऍं सीमित होनी चाहिए तथा ऐसी आवश्‍यकताऍं होनी चाहिए जोकि हमारी सीमा के अंदर ही आऍं । ज्‍यादा उच्‍च व महत्‍वाकांक्षाऍं हमें हमेशा परेशान एवं तनाव देने का काम करेंगी ।

अपना लक्ष्‍य तय करते समय सदैव अपनी सीमाओं एवं क्षमताओं का आकलन कर लें । ऐसा लक्ष्‍य तय करें जोकि आप पा सकें । हर मानव की अपनी अपनी सीमाऍं एवं दक्षताऍं होती है जिन्‍हें किसी दूसरे से तुलना करना उचित नहीं है । लक्ष्‍य तय करने के बाद उन्‍हें पाने के लिए कठिन परिश्रम करें ताकि इन्‍हें भेदित किया जा सके ।

अपने दिमाग को हमेशा कार्यशील रखें । कहा गया है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है । अत: आप हमेशा अपने को व्‍यस्‍त रखें । धन अर्जन ही सब कुछ नहीं होता है । कुछ कार्य आत्‍मसंतोष के लिए भी किया जा सकता है इससे अपार शांति मिलती है । समाज सेवा, दीन दुखियों का दर्द बांटना व साक्षरता के क्षेत्र में योगदान करके देश व समाज की सेवा की जा सकती है ।

रोग होने की स्थिति में जहॉं तक संभव हो आयुर्वेद या होमयोपैथी की दवा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, इससे कोई साइड इफेक्‍ट नहीं होता है । एलोपेथिक दवा का उपयोग विशेष स्थिति में ही किया जाए तो अच्‍छा है ।

योग की महत्‍ता को पूरा विश्‍व जान गया है इसलिए अंतरराष्‍ट्रीय योग दिवस का आयोजन कर आम जनता में योग क्रियाऍं करने पर बल दिया जाता है । योग हमारा दर्शन है और योग के माध्‍यम से अनेको असाध्‍य रोगों को ठीक किया जा सका है । योग को जीवन शैली का एक अभिन्‍न अंग बनाऍं तथा नित्‍य योग क्रिया करने का समय नियत कर स्‍वस्‍थता पायी जा सकती है ।

आजकल हम पैदल या टलने से बचते हैं । कभी कभी लगता है कि आधुनिक संसाधनों ने मानव को बहुत आलसी बना दिया है । हम अपने अधिकतर कामकाज स्‍कूटर या कार के माध्‍यम से करते हैं । टहलने से बीपी की समस्‍या को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है । अगर संभव हो तो प्रात:काल टहलने की आदत बनाऍं अगर संभव न हो तो खाना खाने के एक घंटे बाद रात को अवश्‍य ही टहलें ।

क्रोध सभी झगड़े की जड़ है । क्रोध को नियंत्रित करना काफी कठिन है लेकिन असंभव नहीं । जहॉं तक संभव हो क्रोध न करें क्‍योंकि क्रोध करने से हृदय की गति काफी बढ़ जाती है और यह हृदयाघात को बुलावा देती है । गलती करना मानव स्‍वभाव है और गलती को क्षमा करना भी जरुरी है । क्रोध के कारणों को पहचाना और उन्‍हें दूर करने का प्रयास करें और जीवन में शांति पाऍं ।

आजकल लगता है कि प्रसन्‍नता मानव के चेहरे से गायब होती जा रही है । प्रसन्‍न रहना सबसे बड़ा सुख है । जीवन में दुख आना भी जरुरी है और दुख को सहज लेना महानता है । दुखों के कारणों को पहचान कर उसे दूर करें । अपने दुख को लोगों के साथ साझा करें इससे आपको सुकून मिलेगा और आपका दुख कम या छोटा नजर आएगा । हर हाल में खुश रहे यही जीवन की आधारशिला है ।

आप लोगों की जहॉं तक संभव हो मदद कीजिए । भगवान आपकी मदद करेगा । दीन हीन की मदद करने से आपको एक अपार सुख का अनुभव होगा जिसे कहीं भी खरीदा नहीं जा सकता है ।

कुछ समय अपने लिए अवश्‍यक निकालें । अपने बारे में सोचिए । अपने रिश्‍तेदारों मित्रों के साथ अपने विचार साझा करिए । पर्यटन पर जाऍं । प्रकृति को निकटता से निहारें देखिए आपको कितना ज्‍यादा अच्‍छा लगेगा । अपने आस पास, घरों में वृक्षों को रोपें । हरियाली का संरक्षण करें । आपका चित्‍त और ज्‍यादा प्रसन्‍न होगा ।

सकारात्‍मक विचारों को अपनाऍं । नकारात्‍मक विचार आपको नीरस एवं निष्‍क्रय बनाते हैं । जो होना होता है उसे कोई भी नहीं रोक सकता तो फिर क्‍यों ना सकारात्‍मक विचारों को पैदा किया जाए इससे आपको शक्ति मिलेगी तथा जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा भी मिलेगी ।

अधिक से अधिक सुनने की आदत डाले । कम से कम बोले और मधुर बोले । अपनो से बड़ों का सम्‍मान करें तथा उनका आर्शीवाद लें । फिर देखिए कि आपकी दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति होगी ।

यह माना कि धन जीवन के लिए जरुरी है लेकिन धन को ही लक्ष्‍य न बनाऍं । आज का आदमी धन को ही सबकुछ समझने लगा है । उसके रिश्‍ते नातेदार दूजे दर्जे के होने लगे हैं । धन से कुछ हद तक सहायता ली जा सकती है लेकिन सुख, स्‍वास्‍थ्‍य, प्रेम एवं निष्‍ठा जैसी भावनाओं को नहीं खरीदा जा सकता है ।

जीवन में आध्‍यात्‍म का बहुत बड़ा महत्‍व है । आध्‍यात्‍म व्‍यक्ति को आत्‍मावलोकन कर भगवान की शरण में जाने को प्रोत्‍साहित करता है । यही स्थिति वैराग्‍य की है जबकि जीवन में काफी कुछ अर्जित कर एकांत एवं मोक्ष की प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है । इससे मन को शांति मिलती है । यही भारतीय दर्शन है व जीवन का अंतिम पड़ाव भी है । हम सभी को इसी यात्रा से गुजरना होगा ।

हर हाल में मुस्‍कुराइए और जीवन को सहज बनाइए ।

– राजीव सक्‍सेना

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