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मोबाइल
मोबाइल ने अदभुत क्रांति दिखाई,
हर हाथ में मोबाइल ने शरण पाई।
दिन रात सम्पर्कों में व्यस्तता दिखाई,
क्षण भर के लिए निकटता संग आई ।
आना जाना कम, मेल मिलाप भी भंग,
बेतार के तार से दिल के खुले पट बंद।
गाने, समाचार सभी को संगीत से सिमेटा,
मनोरंजन के सुसाधन को क्षणभर में लपेटा।
आज का मानव कान से मोबाइल लगा,
मस्त हो हर समय सभी से बतियाने लगा।
सुकून के दो बोल के लिए दूर हो गया,
विज्ञान ने आलसी व विलासी बनाया,
रिश्तों में प्यार व निजता को यूँ भुलाया।
अब न पहले जैसी व्याकुलता और मीठापन,
लोकदिखावे से ऊब रहा है रे ये मन।
पल पल की खबर देता मोबाइल बैरी,
आजादी के पैरों की बन गया है बेड़ी।
जितनी अधिक हाईटेक पद्धति अपनाएंगे,
मानव उतना जड़ और मशीनवत पाएंगे।
क्योंकि भावनारहित है मशीनवत प्रक्रिया,
इसके साहचर्य से रिश्ता अधीर और बेरुखा।
विकास की पराकाष्ठा और कहॉं तक ले जाएगी,
निश्चित ही मानवता से दूर और दूर कर जाएगी।
प्यार और समर्पण शोकेस में अब कैद हो गए हैं,
रिश्ते और जज्बात उन्नति भाव में समाने लगे हैं ।
– राजीव सक्सेना
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