samras
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गोवा मचलता है ।
ये मानाकि गोवा, लहरों में बसा है,
गगनचुंबी पर्वत, सागर सा गहरा है ।
चारों तरफ हरियाली, दरिया मनोहारी है,
चांद और सूरज मिलन को बेताव है।
चांद सी प्रेयसी लहरों में विचरती है,
प्यार के सागर में किनारे चूम रही है ।
आनंद और विलासता की पराकाष्ठा है,
हर तरफ तन मन खुशी से झूम रहा है ।
हाथों में हाथ डाले लवों पे जाम है,
शॉटकट ड्रेसों में, प्यार रम रहा है ।
शांति की ऊँची हिलोरे उठ रही हैं,
दुख और दर्द परे मन बहक रहा है।
निशा के आगोश में जब दिन समाता है,
संगीत की धुनों पर तब सुरा मुस्कुराती है ।
खाओ, पियो, मौज करो बस यही धारणा है,
देशी, विदेशियों के दिलों में गोवा मचलता है ।
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