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सामाजिक मूल्यों का विलोपन
मनुष्य समाजिक प्राणी है । समाज के बिना मनुष्य के जीवन की परिकल्पना ही नहीं की जा सकती है । आदिकाल से ही मानव असभ्यता के दौर से गुजरता हुआ आज सभ्यता के दौर में दृश्यमान हो रहा है । शिक्षा संस्कृति व सभ्यता ने मनुष्य को परिवार नामक एक संस्था दी जिसके सहयोग से वह सुरक्षित एवं संरक्षित रुप से जीवन यापन करने लगा । पूर्व में यह परिवार संयुक्त परिवार के रुप थे जिसमें माता पिता,दादा दादी,चाचा चाची एवं बच्चे सामूहिक रुप से रहते थे । परिवार के पुरुष रोजगार करके सामूहिक रुप से जीवन यापन करते थे किंतु धीरे धीरे विज्ञान एवं आधुनिकता के दौर से इस संस्थान में विलोपन शुरु हुआ और आज मात्र संयुक्त परिवार अवशेष के रुप में ही यदा कदा दिखते हैं ।
सामाजिक जीवन में सामाजिक मूल्यों का होना अत्यंत आवश्यक है । दया, प्रेम,त्याग, क्षमा,अनुशासन एवं शांति ही हमारे सामाजिक दर्शन के रुप में विद्यमान थे और इनकी दिव्यता से हमारा परिवार दिव्यमान होता था । धीरे धीरे हम स्वार्थी होते गए और ये समाजिक मूल्य शिथिल होते गए । संयुक्त परिवार से हम एकल परिवार यानीकि पति पत्नी एवं बच्चों तक ही सीमित हो गए । हमने रोजगार की तलाश में शहरों में घूमना शुरु कर दिया और हमारे माता-पिता एवं अन्य असहाय सदस्य बेसहारे होते गए । इसका परिणाम यह हुआ कि आज समाज में वृद्धालयों का निर्माण हो गया जहॉं पर इन लोगों को खाने पीने एवं रहने की सुविधा एक मुश्त किराया देकर दी जाने लगी ।
हमारे बुर्जुग ही हमारी महान सम्पत्ति हैं जिन्होंने हमें जीवन में जीने का साहस दिया, संबल दिया और आज जब वे अलग रहकर जीवन यापन कर रहे हैं तो निश्चित ही कहीं न कहीं हम स्वयं जिम्मेदार हैं । माता पिता जीवन में बहुत कुछ खोकर हमें इस योग्य बनाते हैं कि हम सभ्य समाज में एक स्तरीय स्थिति में रहें लेकिन समय के बहाव के साथ वह कमजोर होते रहते हैं । इन सभी के पीछे हमारे सामाजिक मूल्यों का विलोपन ही है ।
तकनीकी एवं सभ्य समाज में हम मशीनवत होते जा रहे हैं जोकि सामाजिकता की दृष्टि से बहुत ही सोचनीय है । मानाकि मशीन में भावना नहीं होती लेकिन मानव तो सदैव ही भावना प्रधान रहा है । कभी कभी लगता है कि मशीनों के बीच काम करते करते हमारा शरीर व मन भी मशीन तुल्य संवेदनहीन होता जा रहा है । हमारे अंदर भावना एवं इंसानियत समाप्त होती जा रही है और यही कारण है कि आज हमारे पास पैसा है, धन है, समृद्धि है तथापि हमें मखमली बिस्तरों पर रात में नींद की गोलियाँ लेकर भी नींद नहीं आती है अर्थात हमारा मन अधिकतर परेशान रहता है । हमारी महत्वाकांक्षा बढ़ती जा रही है और हम एक भावहीनता की श्रेणी में आते जा रहे हैं ।
आज समय आ गया है कि जब हम अपने परिवार के सदस्यों में प्रेम,त्याग, शांति, अनुशासन व धैर्य का संचार करें । आप धन की ताकत पर सुख नहीं खरीद सकते हालांकि कुछ आरामदेय सुविधाओं का लाभ ले सकते हैं । आज परिवार या समाज में अधिकतर सदस्य अनुशासन में रहना पसंद नहीं करते । अगर सभी को स्वतंत्र कर दिया जाए तो समाज में अव्यवस्था की स्थिति आ सकती है इसीलिए हर समाज अपने नियम बनाता है और उनका अनुपालन सुनिश्चित करता है । हमें यह भी याद रखना होगा कि हमारी स्वतंत्रता किसी और की स्वछन्नता हो सकती है । अत: हमें दूसरों के हितों को ध्यान में रखकर ही अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करना होगा । तभी हम सच्चे अर्थ में सुसंस्कृत मानव हो सकते हैं ।
भूमंडलीकरण ने मानव को चकाचौंध कर दिया है । आज पूरा विश्व एक कटोरे के रुप में उभरने लगा है और सूचना क्रांति ने तो तीव्रता से हमारे जीवन यापन के क्षेत्र में अनेकों परिवर्तन ला दिए हैं । आज हम भौतिक सुख को ही सब कुछ समझ बैठे हैं । मानसिक सुख जीवन में शांति प्रदान करता है और यही कारण है कि अमेरिका, जापान, जर्मनी आदि विकसित देशों के लोग शांति के लिए भारत का रुख करने लगे हैं उनके पास अपार संपत्ति है लेकिन मानसिक सुख नहीं है जोकि जीवन के लिए अत्यावश्यक है ।
निष्कर्ष रुप में हम यह कह सकते हैं कि हम सभी को अपने सामाजिक मूल्यों का अनुपालन करके परिवार व समाज में एक माडल उपस्थित करना होगा जो जैसा कहता है वैसा वास्तविक जीवन में करके ही दिखाना है । यही भावना हमें विश्वशांति की ओर अभिमुख करेगी और भारत योग गुरु की श्रेणी में उभरेगा । विश्व स्तर पर योग को मान्यता दी गई और योग दिवस पूरे विश्व में उल्लास के साथ मनाया गया । योग की क्रियाऍं हमें शक्ति व शांति की ओर प्रेरित करती हैं । योग से हमें निरोगी काया मिलती है । हमें अपने गुरुजनों, बुर्जुगों एवं माता पिता का हृदय से सम्मान करना होगा तथा एक सुपृथा को विकसित करना होगा जिस पर हमारी नई पीढि़यॉं विश्वास कर सकें और इन्हें अपने जीवन में उतार सकें।
सामाजिक मूल्यों का करें नित्य संचार,
जीवन को रखें सुखद और सदाचार ।
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